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222... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन विधि
दायीं अथवा बायीं हथेली को सामने की ओर अभिमुख करें। तत्पश्चात मध्यमा और अनामिका को तीसरे पोर से मोड़ते हुए अंगुठे के अग्रभाग से स्पर्श करवायें तथा कनिष्ठिका और तर्जनी को ऊपर की ओर करने से चंद्रमृग मुद्रा बनती है।18
लाभ
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चक्र- मूलाधार, स्वाधिष्ठान एवं अनाहत चक्र तत्त्व- पृथ्वी,जल एवं वाय तत्त्व ग्रन्थि- प्रजनन एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति, स्वस्थ्य एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव, मल-मूत्र अंग, गुर्दे, प्रजनन अंग, हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्त संचरण तंत्र। 19. गर्दभ मुद्रा
गधा का संस्कृत रूप गदर्भ है। गधा शब्द मूर्ख, नासमझी, कम अक्ल के विषय में प्रयुक्त किया जाता है। गधा कभी भी दिमाग का सही उपयोग नहीं करता। यह मुद्रा नाटक आदि में मूर्खता के सूचनार्थ की जा सकती है। ___ विद्वानों ने इस संयुक्त मुद्रा को खच्चर की सूचक बतलाया है। यह मुद्रा नागबंध मुद्रा के समान है। विधि ____दोनों हथेलियों को आगे की तरफ करें, अंगूठों को तर्जनी अंगुलियों के
गर्दभ मुद्रा