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________________ लाभ भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य......221 चक्र स्वाधिष्ठान, अनाहत एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- जल एवं वायु तत्त्व ग्रन्थि - प्रजनन, थायमस एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र- स्वास्थ्य, आनंद एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्त संचरण तंत्र, निचला मस्तिष्क, स्नायु तंत्र। 18. चंद्र मृग मुद्रा चन्द्रमा को लांछन युक्त मानते हैं क्योंकि मृग को लांछन रूप माना गया है। चन्द्रमा के लांछन (धब्बे) के विषय में भिन्न-भिन्न कथाएँ प्रसिद्ध है। कुछ लोग कहते हैं कि दक्ष प्रजापति के श्राप से चंद्रमा को राजयक्ष्मा रोग हुआ; उसकी शांति के लिए वे अपनी गोद में एक हिरन लिए रहते हैं। किन्हीं के मत से चंद्रमा ने अपनी गुरूपत्नी के साथ गमन किया था; इसी कारण शापवश उनके शरीर पर काला दाग पड़ गया है। कहींकहीं यह भी लिखा है कि जब इन्द्र ने अहिल्या का सतीत्व भंग किया था, तब चंद्रमा ने इंद्र को सहायता दी थी। उस समय गौतमऋषि ने चंद्र मृग मुद्रा क्रोधवश उन्हें अपने कमंडल और मृगचर्म से मारा, जिसका दाग उनके शरीर पर पड़ गया। यह मुद्रा लांछन युक्त चन्द्रमा से सम्बन्धित है तथा विद्वानों के अनुसार शाही मृग की सूचक है।
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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