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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य......217
14. छग मुद्रा
छग बकरा का वाच्य है।
बकरे की कुछ निजी विशेषताएँ हैं- उसे जो मिले खा लेता है। वह साहसी और चालाक होता है।
वैदिक काल से स्मृति काल तक और आज भी वैदिक परम्परा में बकरे को बलि के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
यह मुद्रा पशुओं की सूचक और शिखर मुद्रा के समान है।
निम्न चित्र में बकरे जैसी आकृति भासित होती है अत: इसे छग मुद्रा कहा गया है। विधि
दोनों हथेलियों को आमने-सामने करते हुए निकट लायें
और उन्हें मध्यभाग में स्थिर करें। फिर अंगुलियों को हथेली में मोड़कर मुट्ठी रूप में बांधे तथा अंगठों को ऊपर की ओर करके उन्हें परस्पर संस्पर्शित करने से छग मुद्रा बनती है।14 लाभ चक्र- मणिपुर
छग मुद्रा एवं अनाहत चक्र तत्त्व- अग्नि एवं वायु तत्त्व ग्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, स्वर तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँते, नाक, कान, गला एवं मुख।