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216... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
करने पर ब्राह्मण मुद्रा बनती है। 12
लाभ
चक्र - मूलाधार, आज्ञा एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि - प्रजनन, पिनियल एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र - शक्ति, दर्शन एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - मेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव, मस्तिष्क, स्नायुतंत्र एवं आँखें।
13. बृहस्पति मुद्रा बृहस्पति गुरू को कहते हैं। यह मुद्रा नौ ग्रहों में से गुरू ग्रह
की सूचक है अतः इसका नाम बृहस्पति
मुद्रा है।
विधि
इस मुद्रा को
के समान
ब्राह्मण मुद्रा ही करते हैं, केवल
दायें हाथ को आगे
पीछे नहीं किया
जाता है।
मुद्रा बनाने का
पूर्ववत
तरीका
समझें।13
लाभ
बृहस्पति मुद्रा
चक्र - मूलाधार, आज्ञा एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि - प्रजनन, पिनियल एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र - शक्ति, दर्शन एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - मेरूदण्ड, गुर्दे, पैर, मस्तिष्क, स्नायुतंत्र एवं आंखें।