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214... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
लाभ
चक्र- अनाहत,सहस्रार एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि- थायमस, पिनियल एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र- आनंद, ज्योति एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- हृदय, फेफड़ें, रक्त संचरण तंत्र, भुजाएं, मस्तिष्क, स्नायु तंत्र, आँख। 11. ब्रह्म मुद्रा
इस मुद्रा के नाम से ही सूचित होता है कि यह मुद्रा ब्रह्मदेवता से सम्बन्धित है। वैदिक परम्परा के अनुसार ब्रह्मा सृष्टि के निर्माता माने जाते हैं।
इस मुद्रा के द्वारा ब्रह्मा की विशेषताओं को दर्शाया जाता है। यह संयुक्त मुद्रा नाटकों आदि में दोनों हाथों से धारण की जाती है। विधि
दोनों हथेलियों को बाहर की ओर अभिमुख करें, दायें हाथ का अंगूठा और तर्जनी के प्रथम पोर को परस्पर में स्पर्श करवायें तथा मध्यमा, अनामिका
और कनिष्ठिका- इन तीनों अंगुलियों को अलग-अलग फैलाते हुए ऊपर की ओर
करें।
बायें हाथ की चारों अंगुलियों को ऊपर की ओर सीधी रखें, कनिष्ठिका अंगुली को थोड़ा सा अलग रखें तथा अंगूठे के अग्रभाग को
ब्रह्म मुद्रा