________________
भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य......213
लाभ
चक्र- मणिपुर, आज्ञा एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व- अग्नि, वायु एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज, पीयूष, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थि केन्द्र- तैजस, दर्शन एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, नाड़ीतंत्र, आँतें, निचला मस्तिष्क, स्नायु तंत्र, नाक, कान, गला, मुख एवं स्वर यंत्र। 10. भिन्नांजली मुद्रा
जहाँ दो अंजलियाँ भिन्न-भिन्न हों उसे भिन्नांजलि कहते हैं। यहाँ भिन्नांजलि शब्द का अभिप्रेत गधा से है। विद्वानों के अनुसार यह मुद्रा जानवरों की सूचक है।
दर्शाये चित्र में भिन्न-भिन्न दो अंजलि प्रतिभासित हो रही हैं। अत: इस मुद्रा को भिन्नांजली मुद्रा कहा जा सकता है।
यह मुद्रा नाटक आदि में कलाकारों के द्वारा की जाती है। विधि
दोनों हाथों को एक-दूसरे के निकट लायें, तर्जनी अंगुलियों को थोड़ा सा मोड़ते हुए उनके अग्रभागों को परस्पर में स्पर्शित करें, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका
भिन्नांजली मुद्रा अंगुलियों को ऊपर की ओर उठायें तथा अंगूठों को बाह्य किनारों से मिलने पर भिन्नांजली मुद्रा बनती हैं।10