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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य......211 विधि
दायें अथवा बायें हाथ के अंगूठे और तर्जनी के प्रथम पोर को परस्पर स्पर्शित करें, मध्यमा और अनामिका अंगुलियों को ऊपर की ओर सीधा रखें तथा कनिष्ठिका को हथेली से योजित (स्पर्शित) करके रखने पर बक मुद्रा बनती है।
बक मुद्रा
लाभ
चक्र- मणिपुर, अनाहत एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- अग्नि, वायु एवं आकाश तत्त्व अन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज, थायमस एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- तैजस आनंद एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, नाड़ीतंत्र, आँतें, हृदय, फेफड़ें, भुजाएं, रक्त संचरण तंत्र, ऊपरी मस्तिष्क एवं आँखें।