________________
भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य... ... 209
पाँचों पांडवों में अर्जुन सबसे अधिक पराक्रमी, उदार, गंभीर और उच्च विचारों का धनी था अत: इस मुद्रा से अर्जुन के समस्त गुणों का सूचन होता है। अर्जुन की विशेषताओं को ज्ञापित करने के लिए इस मुद्रा का प्रयोग नाटकों में बहुलता से होता है ।
विधि
दायीं अथवा बायीं हथेली को बाहर की ओर अभिमुख करें। तदनन्तर अनामिका अंगुली को हथेली की तरफ मोड़ते हुए अंगूठे सहित शेष अंगुलियों को ऊपर की ओर सीधा रखें तथा हथेली को क्रमशः आगे-पीछे करते रहने से अर्जुन मुद्रा बनती है।
यह मुद्रा कंधों के स्तर पर धारण की जाती है और त्रिपताका मुद्रा के समान ही है।
लाभ
चक्र- अनाहत एवं आज्ञा चक्र तत्त्व - वायु एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि - थायमस एवं पीयूष ग्रन्थि
केन्द्र - आनंद एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - हृदय, फेफड़ें, भुजा, रक्त संचरण तंत्र, निचला मस्तिष्क एवं स्नायु तंत्र।
7. अशोक मुद्रा
अशोक का शाब्दिक अर्थ होता है जहाँ किसी प्रकार का शोक, दारिद्र्य न हो ।
अशोक नाम का एक वृक्ष भी है जो अत्यन्त सुन्दर और हरा भरा होता है। शुभ अवसरों पर अशोक वृक्ष के पत्तियों की बंदनवारे बांधी जाती है। प्रसंगानुरूप यह मुद्रा अशोक वृक्ष की सूचक है।
दुःख,
विधि
दोनों हथेलियों को अपने से आगे की ओर सीधा रखते हुए उन्हें छाती के स्तर पर धारण करें, अंगुलियों एवं अंगूठों को ऊपर की ओर उठायें, दोनों हाथों को कलाई पर Cross करते हुए रखें तथा उन्हें आगे पीछे हिलाते रहने से अशोक मुद्रा बनती है। 7