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208... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन अभिनय देखने वालों को उन दोनों का अर्धमुख ही दृष्टिगोचर होता है। इसलिए भी इस मुद्रा को अर्धमुख कहा गया है।
यह मुद्रा किसी भी एक हाथ से की जाती है। विधि
दायीं अथवा बायीं हथेली को सामने की ओर अभिमुख करते हुए तर्जनी, मध्यमा और कनिष्ठिका अंगुलियों को हथेली के अंदर मोड़ें तथा अंगूठे के अग्रभाग को अनामिका के अग्रभाग से स्पर्शित करने पर अर्धमुख मुद्रा बनती है। लाभ
चक्र- मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- अग्नि एवं जल तत्त्व प्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थियां केन्द्र- तैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, नाड़ीतंत्र, आँतें, मल-मूत्र अंग, गुर्दे, प्रजनन अंग। 6. अर्जुन मुद्रा
यहाँ अर्जुन मुद्रा, कुन्ती से उत्पन्न तृतीय पुत्र अर्जुन से सम्बन्धित है। अर्जुन शब्द उज्ज्वल अर्थ को भी प्रकट करता है। इस अर्थ को पांडव अर्जुन के साथ भी घटित किया जा सकता है। क्योंकि अपने कार्यों में पवित्र और विशुद्ध होने के कारण ही वह अर्जुन कहलाया।
अर्जुन मुद्रा