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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य......207 स्थिर करते हुए तर्जनी के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से संयोजित करें, मध्यमा को हथेली की तरफ झुकाते हुए रखें तथा अनामिका एवं कनिष्ठिका को हल्की सी हथेली की तरफ मोड़ते हुए रखने से अराल कटक मुख मुद्रा बनती है।
इस मुद्रा में दोनों हाथों को कलाई के स्तर पर Cross करते हुए रखना चाहिए, तब ही मदमत्त हाथियों के दल जैसा दृश्य भासित हो सकता है। लाभ
चक्र- विशुद्धि एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थिथायरॉइड, पेराथायरॉइड एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- विशुद्धि एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- नाक, कान, गला, मुँह, स्वर तंत्र, ऊपरी मस्तिष्क एवं आंख। 5. अर्धमुख मुद्रा
अर्धमुख का सीधा सा अर्थ है आधा मुख। इस मुद्रा को बनाने पर हथेली का आधा भाग ही दिखायी देता है अत: इसे अर्धमुख मुद्रा कहा जा सकता है।
यह मुद्रा विशेषतया नाटक आदि में प्रयोग की जाती है। इस संदर्भ में अनुमान किया जाता है कि जब नाटक में दो व्यक्ति परस्पर बातचीत करते हैं तब उन दोनों का मुख एक-दूसरे की ओर रहता है लेकिन
अर्घमुख मुद्रा