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206... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
लाभ ___चक्र- मणिपुर एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व- अग्नि एवं वायु तत्त्व अन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, नाड़ीतंत्र, आँतें, नाक, कान, मुख, गला, स्वर तंत्र। 4. अराल-कटक मुख मुद्रा
अराल के विभिन्न अर्थों में यहाँ उन्मत्त हाथी को अराल कहा गया मालूम होता है। कटक शब्द से दल, सेना आदि का बोध होता है। प्रसंगानुसार कहा जा सकता है कि जिस मुद्रा के द्वारा उन्मत्त हाथियों के समूह को दर्शाया जाता है उसे अराल-कटक-मुख मुद्रा कहते हैं। .
विद्वानों के अनुसार यह मुद्रा चिंता, भय आदि भावों को प्रकट करती है। उन्मत्त (पागल) हाथियों के समूह को देखकर चिंतित और भयभीत होना स्वाभाविक है अत: यह मुद्रा नामोचित गुण से युक्त है। नाटक आदि में यह मुद्रा भावाभिव्यक्ति के लिए की जाती है। विधि
दायी हथेली को सामने की ओर अभिमुख करते हुए मध्यमा, अनामिका
और कनिष्ठिका अंगुलियों को ऊपर की ओर उठायें, अंगूठे को बलपूर्वक सीधा रखें तथा तर्जनी अंगुली को हथेली की ओर झुकाते हुए रखें।
बायीं हथेली को भी आगे की ओर
अराल कटक मुख मुद्रा
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