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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य......205 मेरूदण्ड, पाँव, निचला मस्तिष्क एवं स्नायु तंत्र। 3. अंगारख मुद्रा
दहकता हुआ अथवा बुझा हुआ कोयला अंगारक कहलाता है। निर्धूम अग्नि भी अंगारक वाची है। अंगारख का एक अर्थ मंगलग्रह है। अंगारख की भाँति मंगल ग्रह उष्ण स्वभावी है। अत: इसे मंगलग्रह की सूचक मुद्रा कहा गया है।
यह मुद्रा नाटकों आदि में प्रयुक्त होती है और दोनों हाथों को मिलाकर की जाती है। विधि
दायी हथेली को शरीर के अग्रभाग में स्थिर करते हुए अंगुलियों को अंदर की ओर मोड़ें तथा अंगूठे को अंगुलियों के प्रथम पोर के ऊपर रखें। बायीं हथेली को सामने की ओर करते हुए तर्जनी और अंगूठे को ऊपर की ओर करें तथा शेष अंगुलियों को हथेली में मोड़ने पर अंगारख मुद्रा बनती है।
अंगारख मुद्रा