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204... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन दिया, यज्ञकर्ता वीरभद्र ने पार्वती के पिता दक्ष एवं उसके यज्ञ का ध्वंस कर दिया परन्तु शिव आज्ञा से दक्ष को जीवित करने के लिए उसके ऊर्ध्व भाग पर बकरे का सिर लगा दिया गया। अनुमानत: इस घटना के सन्दर्भ में अजमुख मुद्रा दिखायी जाती होगी।
इस मुद्रा का प्रयोग नाटकों एवं नृत्यों में भावों को दर्शाने के लिए होता है। विधि
दोनों हथेलियों को मुट्ठी रूप में बांधकर अंगूठों को ऊपर की तरफ करें। फिर दोनों हाथों की अंगुलियों के मध्य भाग (पृष्ठ भाग के दूसरे पोर) को एकदूसरे से स्पर्शित करवाने पर अजमुख मुद्रा बनती है।2
अजमुख मुद्रा लाभ
चक्र- मूलाधार, स्वाधिष्ठान एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- पृथ्वी, जल एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि- प्रजनन एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति, स्वास्थ्य एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मल-मूत्र अंग, गुर्दे, प्रजनन अंग,