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194... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
10. वराह मुद्रा
वराह शब्द शुकर, सुअर, विष्णु, सांड, पर्वत आदि अर्थों को सूचित करता है।
यहाँ वराह से अभिप्रेत विष्णु हो सकता है क्योंकि विष्णु का एक अवतार वराह अवतार भी है।
विधि
दोनों हाथों को मृगशीर्ष मुद्रा में रचित कर दायें हाथ के पृष्ठ भाग पर बायीं हथेली को रखें, तदनन्तर दायें हाथ की कनिष्ठिका को बायें अंगूठे से तथा बायें हाथ की कनिष्ठिका को दायें अंगूठे से स्पर्शित कर देने पर वराह मुद्रा बनती है। 26
वराह मुद्रा
चक्र
मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- अग्नि एवं जल तत्त्व ग्रन्थि - एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - पाचन संस्थान, नाड़ी संस्थान, यकृत, तिल्ली, आँतें, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे ।
लाभ