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अभिनय दर्पण में वर्णित अतिरिक्त मुद्राओं के सुप्रभाव......187
लाभ
चक्र - विशुद्धि, सहस्रार एवं अनाहत चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व केन्द्र - विशुद्धि, ज्ञान एवं आनंद केन्द्र ग्रन्थि - थायरॉइड, पेराथायरॉइड, पीयूष एवं थायमस ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग - नाक, कान, गला, मुँह, स्वरयंत्र, ऊपरी मस्तिष्क, आँखें, हृदय, फेफड़ें, रक्त संचरण प्रणाली आदि। 3. शकट मुद्रा
वाहन को संस्कृत में शकट कहते हैं। यह संयुक्त मुद्रा नाटक आदि में भावाभिव्यक्ति हेतु की जाती है। विद्वानों के अनुसार यह राक्षसों के भावों की सूचक है।
विधि
दोनों हाथों को भ्रमर मुद्रा में रचित कर मध्यमा और
अंगूठों को फैलायें। फिर दोनों अंगूठों के अग्रभाग को निकट
लाने पर शकट मुद्रा बनती है। 18
इस मुद्रा में तर्जनी अंगुली हथेली के भीतर मुड़ी हुई, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका ऊपर की तरफ अलग फैली हुई तथा दोनों हाथ के अंगूठे निकट रहते हैं।
अलग
शकट मुद्रा
लाभ
चक्र - अनाहत एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व- वायु तत्त्व केन्द्र - आनंद एवं विशुद्धि केन्द्र ग्रन्थि - थायमस, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड विशेष प्रभावित