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186... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन करवाने के उद्देश्य से इस मुद्रा का उपयोग होता है।
विधि
बायें हाथ की अर्धचन्द्र हथेली पर दाहिने हाथ को शिखर मुद्रा की भाँति रख देने पर शिवलिंग मुद्रा बनती है।16 लाभ
चक्र- सहस्रार, मणिपुर एवं मूलाधार चक्र तत्त्व- आकाश, अग्नि एवं पृथ्वी तत्त्व केन्द्र- ज्ञान, तैजस एवं शक्ति केन्द्र ग्रन्थि- पीयूष, एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं गोनाड्स विशेष प्रभावित अंग- आँखें, मस्तिष्क, पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, आँतें, नाड़ी संस्थान, मेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव। 2. कर्तरी स्वस्तिक मुद्रा ___कर्तरी अर्थात कैंची। जिस मुद्रा में कैंची और स्वस्तिक दोनों का प्रतिरूप दिखाई दे उसे कर्तरी स्वस्तिक मुद्रा कह सकते हैं।
यह संयुक्त मुद्रा नाटक-नृत्य आदि में उपयोगी है। विद्वानों के अभिमत से यह किसी वृक्ष अथवा पहाड़ के शिखर की सूचक है। विधि ___ दोनों हाथों को कर्तरी मुख मुद्रा में रचित कर एक हाथ के ऊपर दूसरा हाथ रख देने से कर्तरी स्वस्तिक मुद्रा बनती है।17
कार्तरी स्वस्तिक मुद्रा
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