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अभिनय दर्पण में वर्णित अतिरिक्त मुद्राओं के सुप्रभाव......183 लाभ
चक्र- सहस्रार, मणिपुर एवं अनाहत चक्र तत्त्व- आकाश, अग्नि एवं वायु तत्त्व केन्द्र- ज्ञान, तैजस एवं आनंद केन्द्र प्रन्थि- पीयूष, एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं थायमस ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- ऊपरी मस्तिष्क, आँखें, पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, हृदय, फेफड़ें, रक्त संचरण तंत्र
आदि। 8. कटक मुद्रा
कटक शब्द के अनेक अर्थों में यहाँ दर्शाये चित्र के अनुसार कटक से तात्पर्य पहाड़ का मध्यभाग होना चाहिए।
यह मुद्रा पर्वत के मध्यभाग जैसी प्रतीत होती है। पर्वत का बीच का हिस्सा ऊँचा तथा आस-पास का नीचे में फैला हुआ रहता है। इस मुद्रा में उसी तरह की प्रतिकृति दिखती है। यह नाट्य मुद्रा एक हाथ से की जाती है। विधि
दायें हाथ को सामने की तरफ करें, फिर सन्दंश मुद्रा में स्थित हाथ की मध्यमा
और अनामिका को ऊपर की ओर करें तथा कनिष्ठिका और तर्जनी को मोड़कर अंगूठे के अग्रभाग से योजित कर देने पर कटक मुद्रा बनती है।14
कटक मुद्रा