________________
अभिनय दर्पण में वर्णित अतिरिक्त मुद्राओं के सुप्रभाव......181 विधि ____ दायीं हथेली को सामने की तरफ करते हुए तर्जनी, मध्यमा और अनामिका को ऊपर की ओर सीधा फैलायें तथा कनिष्ठिका और अंगूठे को अलग रखते हुए हथेली की तरफ मोड़ने से त्रिशूल मुद्रा बनती है।11
लाभ
चक्र- मणिपुर, मूलाधार एवं विशद्धि चक्र तत्त्व- अग्नि, पृथ्वी एवं वायु तत्त्व प्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज, प्रजनन, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थि केन्द्र- तैजस, शक्ति एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, नाड़ी तंत्र, स्वर तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँते, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, नाक, कान, गला, मुँह। 6. व्याघ्र मुद्रा
बाघ या शेर को व्याघ्र कहते हैं। इस मुद्रा के द्वारा व्याघ्र का प्रतिबिंब दिखाया जाता है अत: इसे व्याघ्र मुद्रा कहा गया है। व्याघ्र स्वभावत: भयावह होता है। इसलिए यह मुद्रा उग्रता, क्रूरता एवं भय आदि दिखाने के उद्देश्य से की जाती होगी। विधि
दायीं हथेली को सामने की ओर दिखाते हुए तर्जनी, मध्यमा
और अनामिका को अधोमुख करें तथा कनिष्ठिका और अंगूठे को किंचित झुकाने पर व्याघ्र मुद्रा बनती है।12
व्याघ्र मुद्रा