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________________ अभिनय दर्पण में वर्णित अतिरिक्त मुद्राओं के सुप्रभाव......177 2. मयूर हस्त मुद्रा मयूर संस्कृत का शुद्ध रूप है, प्रचलित भाषा में इसे मोर कहते हैं। संस्कृत में इसका एक नाम भुजंगभुक् भी है क्योंकि यह सांप को खा जाता है। यह सुन्दर पक्षी राष्ट्रीय पक्षी भी माना जाता है। इसके पंख अत्यंत सुंदर होते हैं और यह बादलों को देखकर नृत्य करता है। यह मुद्रा मोर जैसी प्रतीत होती है इसलिए मोर की सूचक तथा शाश्वतता और प्रेम की प्रतीक मुद्रा है। यह नाट्य मुद्रा हिन्दु और बौद्ध परम्परा में भी देवताओं के द्वारा या उनके लिए धारण की जाती है। इस मुद्रा को शकुन के रूप में भी देखते हैं। विधि दायीं हथेली को सामने की ओर करते हुए अंगूठा और अनामिका के अग्रभाग को स्पर्शित करें तथा शेष अंगुलियों को ऊपर की ओर सीधा फैला देने पर मयूर हस्त मुद्रा बनती है। 7 (ACG) के अनुसार इसमें तर्जनी और मध्यमा को हल्का सा अलग कर हुए सीधा फैलाते हैं तथा कनिष्ठिका को हल्की सी झुकाते हैं। लाभ चक्र - अनाहत एवं आज्ञा चक्र तत्त्व वायु एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि - थायमस एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र - आनंद एवं दर्शन मयूर वक्त मुद्रा
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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