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176... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन सूचक मानी गई है। विधि
दायें अथवा बायें हाथ को छाती के स्तर तक ऊपर उठायें, फिर अंगूठे को किंचित झुकाते हुए तर्जनी से सटायें, तर्जनी और मध्यमा अंगुलियों को ऊपर की ओर सीधी रखें तथा अनामिका और कनिष्ठिका को नीचे की ओर झुकाने से अर्धपताका मद्रा बनती है।
आनन्दकुमार स्वामी के अनुसार इस मुद्रा में अंगूठा सीधा रहता है।
अर्घपताका मुद्रा
लाभ
चक्र- अनाहत एवं मूलाधार चक्र तत्त्व- वायु एवं पृथ्वी तत्त्व गन्थिथायमस एवं गोनाड्स ग्रन्थि केन्द्र- आनंद केन्द्र एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्तसंचरणतंत्र मेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव।