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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप...
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द्वितीय विधि
व्याख्यानुसार जिस मुद्रा
में दोनों हाथों को लताहस्त मुद्रा
नाट्य शास्त्र के में रचित कर कोहनियों पर स्वस्तिक के रूप में रखा जाता है वह वलित मुद्रा कहलाती है। 143
वलित मुद्रा-2
भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र एक प्राचीन ग्रन्थ है। वर्तमान में इसी के आधार पर भरत नाट्य, कथक आदि नृत्य कलाओं में विविध मुद्राएँ सिखाई जाती है। प्राचीन होने पर भी इसमें वर्तमान उपयोगी समस्त मुद्राओं का उल्लेख मिलता है। नृत्य में मनोरंजन के साथ-साथ यह मुद्राएँ शरीर के विविध तंत्रों को भी प्रभावित करती है।
यह अध्याय साधारण जनता को मुद्राओं के महत्त्व से परिचित करवाते हुए दैनिक क्रियाओं में जागृति लाएगा। इसी के साथ नृत्य आदि कलाओं से समुचित लाभ की प्राप्ति हो पाएगी।