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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......149 द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र के अनुसार जब दोनों हाथों को अल-पल्लव मुद्रा में रचित कर उर्ध्वप्रसरित करते हए आविद्ध कर दिया जाता है तब वह उल्वण मुद्रा कहलाती है।140 29. ललित मुद्रा
व्यवहार जगत में ललित का सामान्य अर्थ- सुंदर, रमणीय, प्रिय, क्रीडाशील आदि करते हैं।
इस मुद्रा में दोनों हाथों को अल-पल्लव मुद्रा में रचित कर मस्तक के समीप रखते हैं जिससे देह की रमणीयता और सुन्दरता में अभिवृद्धि होती है, इसलिए इसे ललित मुद्रा कहा गया है। ___ विद्वानों ने इस मुद्रा को शालवृक्ष और पहाड़ की सूचक मुद्रा के रूप में माना है। प्रथम विधि
दोनों हथेलियों को ऊपर की तरफ उठायें, अंगुलियों
और अंगूठों को सख्ती से अलगअलग करें, कनिष्ठिका अंगुली को हथेली से 90° कोण पर रखें, अनामिका को हथेली से 450 कोण पर रखें तथा दोनों हाथों को Cross करते हुए सिर के निकट रखे जाने पर ललित मुद्रा बनती
ललित मुद्रा-1
है।141