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146... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
नाटक आदि में अत्यन्त उपयोगी यह मुद्रा कली या फूलों के गुच्छों की सूचक है।
प्रथम विधि
दोनों हथेलियों को बाहर की तरफ करते हुए अंगुलियों एवं अंगूठों को अलग-अलग कर हल्के से हथेली की दिशा में मोड़ें। फिर दोनों हाथों को कलाई पर Cross करते हुए रखने से नलिनी पद्मकोश मुद्रा बनती है। 137
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नलिनी पद्मकोश मुद्रा - 1
लाभ
चक्र- स्वाधिष्ठान, सहस्रार एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- जल एवं आकाश तत्त्व केन्द्र– स्वास्थ्य, ज्ञान एवं ज्योति केन्द्र ग्रन्थि - प्रजनन, पीयूष एवं पीनियल ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग - मल-मूत्र अंग, गुर्दे, प्रजनन अंग, मस्तिष्क, आँखें एवं स्नायु तंत्र।