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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......145 गला, मुँह, स्वर यंत्र, पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, मेरूदण्ड, गुर्दे, पैर। द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र के स्वरूपानुसार जब दोनों हाथों को खटकामुख में रचितकर मणिबन्ध के समीप कुंचित और अंचित कर दिया जाता है तब मुष्टि-स्वस्तिक मुद्रा कहलाती है।136
मुष्टि-स्वस्तिक मुद्रा-2
26. नलिनी पद्मकोश मुद्रा
नलिनी शब्द कमल या कमलिनी का पर्याय है। जहाँ प्रचुरता से कमल प्राप्त होते हैं वह जलाशय, कमलों का समूह भी नलिनी कहलाता है।
इस मुद्रा में दोनों हाथों को पद्मकोश मुद्रा में रचित कर कमल समूह को दर्शाने का भाव व्यक्त किया जाता है अत: इसे नलिनी पद्मकोश मुद्रा कहते हैं।