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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......139 प्रथम विधि
दोनों हाथों की कलाईयों को मोड़ते हुए हथेलियों को नितम्ब के पार्श्व भागों में ऊपर की तरफ रखें। अंगुलियों को अपनी दिशा की ओर फैलायें तथा अंगूठों को अंगुलियों से पृथक जाते हुए दर्शाने पर गरूड़ पक्ष मुद्रा बनती है।129
गरुड़पक्ष मुद्रा-1
लाभ
चक्र- स्वाधिष्ठान, मणिपुर एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- जल, अग्नि एवं आकाश तत्त्व केन्द्र- स्वास्थ्य, तैजस एवं ज्ञान केन्द्र ग्रन्थि- गोनाड्स, एड्रीनल्स, पैन्क्रियाज एवं पिनियल ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, आँतें, मस्तिष्क एवं आंखें। द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र के अनुसार जब पक्षवंचित मुद्रा में रचित हथेलियों को अधोमुख करके आविद्ध कर दिया जाता है तब गरूड़ पक्ष मुद्रा बनती है।130
गरुड़पक्ष मुद्रा-2