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________________ भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......133 यह असंयुक्त मुद्रा हिन्दु परम्परा में तो प्रचलित है ही, किन्तु नृत्य-नाटकों में अधिक प्रयुक्त होती है। __ इस मुद्रा को हाथी की सूंड और उसके शक्ति की सूचक माना गया है। यह नृत्य मुद्रा विशेष रूप से शिव नटराज और अन्य मूर्तियों में देखी जाती है। कुछ लोगों के द्वारा यह मुद्रा सौन्दर्य मुद्रा के रूप में भी देखी जाती है। यह मुद्रा अत्यन्त मनोहर लगती है। प्रथम विधि ___ बायें हाथ को शरीर के आगे से निकालते हुए कोहनी और कलाई के पास हल्का सा मोड़ें तथा हाथ को ढ़ीला रखते हुए हथेली को नीचे की तरफ झुकाने पर करिहस्त मुद्रा बनती है।123 लाभ करिहस्त मुद्रा-1 चक्र- मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं जल तत्त्व प्रन्थि- प्रजनन ग्रंथि केन्द्र- शक्ति एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंगमल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, मेरूदण्ड, पाँव।
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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