SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 132... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन पर लताहस्त मुद्रा बनती है।121 इस मुद्रा में हाथों को जंघा के सन्मुख रखते हैं। लाभ चक्र- मणिपुर एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व- अग्नि एवं वायु तत्त्व प्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड केन्द्र- तैजस एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, नाड़ीतंत्र, आँतें, नाक, कान, गला, मुख, स्वर तंत्र। द्वितीय विधि नाट्य शास्त्र के मतानुसार जिस मुद्रा में दोनों हाथ पताक मुद्रा में नीचे फैलाये हुए और पार्श्व में संस्थित हो उसे लताहस्त मुद्रा कहा जाता है।122 लताहस्त मुद्रा-2 17. करिहस्त/गजहस्त मुद्रा करि का अर्थ है हाथी। इस मुद्रा में एक हाथ को हाथी के सूंड़ की भाँति लहराते हुए दर्शाया जाता है इसलिए यह करिहस्त नाम की मुद्रा है।
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy