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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......125
लाभ
चक्र- मणिपुर एवं विशद्धि चक्र तत्त्व- अग्नि एवं वायु तत्त्व ग्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज केन्द्र- तैजस एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंगपाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, नाड़ी तंत्र, नाक, कान, गला, मुख, स्वर यंत्र। द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र के आधार पर जिस मुद्रा में बायां हाथ चतुरस्र मुद्रा में एवं दायां हाथ रेचित मुद्रा में स्थित हो वह अधरचित मुद्रा कहलाती है।113
अर्थ रेचिता मुद्रा-2 12. उत्तानवंचित मुद्रा
उत्तान शब्द से ताना हुआ, फैलाया हुआ, ऊर्ध्वमुख आदि कई अर्थों का बोध होता है।
वंचित अर्थात विमुख। इस मुद्रा में दोनों हाथ एवं अंगुलियाँ तनी हुई, फैली हुई और एक दूसरे के विमुख रहती है। इसलिए इसे उत्तानवंचित मुद्रा