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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......123 द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र के अनुसार जब दोनों हाथों को हंसपक्ष मुद्रा में प्रदर्शित कर शीघ्रता से घुमाया जाता है तब रेचित मुद्रा बनती है।111
रेचित मुद्रा-2
लाभ
चक्र- मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं जल तत्त्व प्रन्थि- प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंगमल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, मेरुदण्ड, पाँव।