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120... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
को ऊपर की ओर सीधा रखें, फिर दोनों हाथों को एक-दूसरे के निकट लाएं किन्तु स्पर्श नहीं करवाएँ, तब आविद्ध वक्र मुद्रा बनती है।
यह मुद्रा छाती के सामने धारण की जाती है तथा इसमें कोहनियों को शरीर से थोड़ा दूर रखा जाता है। 107
लाभ
चक्र
आज्ञा एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व- आकाश एवं विशुद्धि तत्त्व ग्रन्थि - पीयूष, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थि केन्द्र - दर्शन एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - मस्तिष्क, स्नायु तंत्र, मुख, कान, नाक, गला, स्वर तंत्र।
द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र के अनुसार दोनों हाथों की भुजाओं, स्कन्धों एवं कोहनियों के अग्रभागों को टेढ़ा घुमा दिया जाये और हथेलियों को पराङमुख और अधोमुख करके आविद्ध कर दिया जाये, वह आविद्ध वक्र मुद्रा कहलाती है । "
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आविद्ध वक्र मुद्रा-2