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112... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
यह नाट्य मुद्रा कलाकार या नर्तक भाव दर्शाने के लिए धारण करते हैं। इस मुद्रा में हाथों की हलन-चलन होती है। प्रथम विधि
बायीं हथेली को नीचे की ओर अभिमुख कर अंगुलियों को अंदर की ओर मोड़ें, अंगूठे को अंगुलियों पर रखें तथा कनिष्ठिका को सीधी रखें।
दायी हथेली को ऊपर की ओर अभिमुख कर अंगुलियों को हथेली की तरफ मोड़े, अंगूठे को तर्जनी की ओर मोड़े हुए रखें तथा कनिष्ठिका को सीधी रखने पर उदवृत्त मुद्रा बनती है।97
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उदवृत्त मुद्रा-1 लाभ
चक्र- स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- जल तत्त्व प्रन्थि- प्रजनन, एड्रीनल केन्द्र- स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग,
गुर्दे।