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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......111
लाभ
चक्र- आज्ञा एवं मणिपुर चक्र तत्त्व- आकाश एवं अग्नि तत्त्व प्रन्थिपीयूष, एड्रीनल एवं पैन्क्रियाज केन्द्र- दर्शन एवं तैजस केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, मस्तिष्क, स्नायु तंत्र। द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र के अनुसार जिस मद्रा में दोनों हाथ खटकामुख मुद्रा में वक्षःस्थल से आठ अंगुल की दूरी पर सामने की ओर हो तथा दोनों कोहनियाँ और कंधे समान रूप से सन्तुलित हों, वह चतुरस्र मुद्रा है।96
चतुरख मुद्रा-2 2. उवृत्त मुद्रा
उद्वृत्त शब्द के अनेक अर्थों में यहाँ विचलित, क्षोभ से भरा हुआ, वृद्धि प्राप्त आदि अभीष्ट हैं। क्योंकि विद्वानों के अनुसार यह मुद्रा व्याकुलता, विवेकशीलता आदि भावों को दर्शाती है।