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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......109 तब तक घुमाया जाता है जब तक हथेलियाँ ऊपर की तरफ न आ जायें | 93
लाभ
चक्र- स्वाधिष्ठान एवं आज्ञा चक्र तत्त्व - जल एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि - प्रजनन एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र- स्वास्थ्य एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, निचला मस्तिष्क एवं स्नायु तंत्र।
द्वितीय विधि
भरत मुनि के नाट्यशास्त्र के अनुसार जिस मुद्रा में एक हाथ मुकुल मुद्रा में हो, दूसरा हाथ कपित्थ मुद्रा में हो और मुकुल मुद्रा रचित हाथ को परिवेष्टित करता हो वह वर्धमान मुद्रा है । 194
वर्धमान मुद्रा - 2
चक्र - मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व
पृथ्वी एवं जल तत्त्व ग्रन्थि - प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र - शक्ति एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंगमेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव, प्रजनन अंग,
मल-मूत्र अंग।
लाभ