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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......107
लाभ
चक्र- आज्ञा एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- आकाश तत्त्व ग्रन्थि- पीयूष एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- दर्शन एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंगमस्तिष्क, स्नायु तंत्र, आँख। द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र में वर्णित विधि के अनुसार जिस मुद्रा में दोनों हाथों को शुकतुण्ड मुद्रा में रचित कर वक्षः स्थल पर सामने से अंचित और धीरे-धीरे अधोमुख आविद्ध कर दिये जाते हैं वह अवहित मुद्रा कहलाती है।92
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लाभ
अवहित मुद्रा-2 चक्र- अनाहत, आज्ञा एवं मणिपुर चक्र तत्त्व- वायु, आकाश एवं अग्नि तत्त्व प्रन्थि- थायमस, पीयूष, एड्रीनल एवं पैन्क्रियाज ग्रन्थि केन्द्रआनंद, दर्शन एवं तैजस केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्त संचरण तंत्र, पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, निचला मस्तिष्क, स्नायु तंत्र।