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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप... ...103 द्वितीय विधि
भरत मुनि के अनुसार जब दोनों हाथ पताकावत ऊपर की ओर उठे हुए, अंगूठा अधोमुख और दोनों हाथ एक-दूसरे के ऊपर संस्थित हो तब मकर मुद्रा बनती है।87
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मकर मुद्रा-2 लाभ
चक्र- सहस्रार एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- आकाश एवं जल तत्त्व ग्रन्थि- पिनियल एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- ज्योति केन्द्र एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मस्तिष्क, आँख, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे। 11. गजदन्त मुद्रा
हाथी के दाँत को गजदन्त कहते हैं। हाथी के दाँत जिस तरह बाह्य भाग में निकले हुए रहते हैं इस मुद्रा में हाथों की वही स्थिति बनती है अत: इसे गजदन्त मुद्रा कहा गया है।
हिन्दी शब्द सागर के अनुसार प्राचीन काल में नृत्य के दरम्यान इस मुद्रा
दाँत जिस तरह बाह्य भाग