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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप... ...99 द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र के अनुसार जिस मुद्रा में दोनों कन्धे शिथिल और दोनों हाथ पताका मुद्रावत प्रलम्बित हिलते हों वह डोल मुद्रा है।83
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डोल मुद्रा-2 लाभ
चक्र- विशुद्धि, मूलाचार एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- वायु, पृथ्वी एवं जल तत्त्व ग्रन्थि- थायरॉइड, पेराथायरॉइड एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- विशुद्धि, शक्ति एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- कान, नाक, गला, मुख, गुर्दे, स्वर तंत्र, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, मेरुदण्ड, पाँव। 9. पुष्पपुट मुद्रा
पुष्प रखने के लिए बनाया गया हाथों का पुट अथवा संपुट पुष्पपुट कहलाता है। इस मुद्रा में दोनों हथेलियों को पुष्पपुट की भाँति आकार दिया जाता है इसलिए इसे पुष्पपुट मुद्रा कहते हैं।