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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......95 द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र के कर्ता भरत मुनि के अनुसार जिस मुद्रा में दोनों हाथ अपने कंधों के ऊपर तक उठे हुए, अंगुलियाँ फैली हुई और अंगुठा हथेली मध्य में स्थित हो वह उत्संग मुद्रा है।79
उत्संग मुद्रा-2 लाभ
चक्र- मणिपुर एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व- अग्नि एवं वायु तत्त्व प्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रंथि केन्द्र- तैजस एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, नाड़ी संस्थान, यकृत, तिल्ली, आंतें, नाक, कान, गला, मुँह, स्वर तंत्र। 7. निषेध मुद्रा
इस मुद्रा का अपर नाम निषध भी है।
निषध और निषेध दोनों भिन्न-भिन्न अर्थ के वाचक हैं इसलिए स्पष्ट अर्थ कह पाना मुश्किल है।