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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......91 4. स्वस्तिक मुद्रा (द्वितीय)
प्रकारान्तर से स्वस्तिक मुद्रा का एक और प्रकार है जो नृत्तहस्त नाट्य मुद्राओं में उपयोगी बनता है।
यह स्वस्तिक मुद्रा कल्पवृक्ष और पहाड़ की अवस्था को सूचित करती है ऐसा विद्वानों का मानना है। . इस मुद्रा की रचना विधि निम्न प्रकार हैप्रथम विधि
दोनों हथेलियों को सामने की तरफ करें, फिर तर्जनी, मध्यमा, कनिष्ठिका और अंगूठे को ऊपर की ओर फैलायें, अनामिका अंगुलियों को हथेली की तरफ मोड़ें तथा एक हाथ की कलाई को दूसरे हाथ की कलाई पर Cross करते हुए रखना स्वस्तिक मुद्रा का दूसरा प्रकार है।
यह मुद्रा छाती के बायीं तरफ धारण की जाती है।74
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स्वस्तिक मुद्रा-2.1