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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......89 प्रजनन एवं पीयूष ग्रंथि केन्द्र- शक्ति एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंगमेरुदण्ड, पाँव, गुर्दे, निचला मस्तिष्क एवं स्नायु तंत्र। 4. स्वस्तिक मुद्रा (प्रथम)
स्वस्तिक शब्द मंगल, आनन्द, अभिवृद्धि आदि का सूचक है। शुभ अवसरों पर यह मंगल चिह्न दीवार आदि पर बनाया जाता है। धार्मिक कार्यों में चार गति सूचक स्वस्तिक का सर्वाधिक प्रयोग होता है।
एक अज्ञातकृति के अनुसार यह मुद्रा डरते हुए बोलने एवं विवाद को प्रकट करती है। प्रथम विधि
दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठायें, अंगुलियों और अंगूठों को एक साथ आकाश की तरफ फैले हुए रखे, फिर एक हाथ के कलाई भाग को दूसरे हाथ के कलाई स्थान पर रखें तथा अंगुलियों को शिथिल करते हुए हल्के से मोड़ने पर स्वस्तिक मुद्रा बनती है।72
स्वस्तिक मुद्रा-1.1