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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......87
लाभ
चक्र- मणिपुर एवं अनाहत चक्र तत्त्व- अग्नि एवं वायु तत्त्व ग्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं थायमस ग्रंथि। केन्द्र- तैजस एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, नाड़ी संस्थान, रक्त संचरण संस्थान, यकृत, तिल्ली, आँतें, हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ। द्वितीय विधि
कपोत मुद्रा एक अन्य प्रकार से भी बनती है। इसमें मुद्रा बनाने का तरीका पूर्ववत ही है। विशेष इतना है कि इस मुद्रा को हिलाया जाता है जो पण्डुक पक्षी के चहचहाने-बोलने की सूचना देती है।70
कपोत मुद्रा-2 लाभ
चक्र- आज्ञा एवं अनाहत चक्र तत्त्व- आकाश एवं वायु तत्त्व ग्रन्थिपीयूष एवं थायमस ग्रंथि केन्द्र- दर्शन एवं आनन्द केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- निचला मस्तिष्क एवं स्नायु तंत्र।