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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......85
लाभ ___चक्र- मूलाधार, मणिपुर एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व- पृथ्वी, अग्नि एवं वायु तत्त्व अन्थि- प्रजनन, एड्रिनल, पैन्क्रियाज, थायरॉइड, पेराथायरॉइड केन्द्र- शक्ति, तैजस एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मेरुदण्ड, गुर्दे, पैर, पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, स्वर तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँते, नाक, कान, गला, मुँह। द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र के अनुसार जब दोनों हाथों को पताका मुद्रावत बनाकर परस्पर संयुक्त कर दिया जाये तो वह अंजली मुद्रा कहलाती है।68
अंजली मुद्रा-2 लाभ
चक्र- सहस्रार एवं अनाहत चक्र तत्त्व- आकाश एवं वायु तत्त्व ग्रन्थिपिनियल एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- ज्योति एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- ऊपरी मस्तिष्क, आंख, हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्त संचार प्रणाली।