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84... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
___ संयुक्त हस्त की 13 मुद्राएँ
1. अंजलि मुद्रा
दोनों हथेलियों को मिलाकर बनाया हुआ संपुट अंजलि कहलाता है। किसी भी पदार्थ को अर्पित करने की विधिवत प्रक्रिया अंजलि कही जाती है।
इस मुद्रा के लिए अंजलि कर्म, सर्व राजेन्द्र, वज्रअंजली करणा, पद्मांजली, संपुतांजली आदि नाम भी प्रसिद्ध है। चीन देश में यह मुद्रा “कांगहो-चेंग" के नाम से तथा जापान देश में “कोंगो गस्सहो” “ने बिना गस्सहो" के नाम से जानी जाती है।
यह नाटकों आदि में नृतकों द्वारा तो प्रयुक्त होती ही है, किन्तु हिन्दु और बौद्ध परम्पराओं में भी देवताओं आदि के लिए धारण की जाती है। __इस मुद्रा के द्वारा किसी को आमंत्रित करने एवं वंदन करने के भाव भी दर्शाते हैं। यह आराधना और पूजा की मुद्रा भी है। प्रथम विधि
दोनों हथेलियों को एक-दूसरे के अभिमुख करते हुए परस्पर में संयुक्त कर देने पर अंजलि मुद्रा बनती है।
इसमें अंगुलियाँ ऊपर की ओर उठी हुई, हल्की सी मुड़ी हुई एवं उनके अग्रभाग एक-दूसरे से स्पर्श किये रहते हैं।
यह ठुड्डी के स्तर पर धारण की जाती है।67
अंजली मुद्रा-1