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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप...
24. ताम्रचूड़ मुद्रा (द्वितीय)
ताम्रचूड़ मुद्रा का एक अन्य प्रकार भी प्रचलित है। यहाँ ताम्रचूड़ का तात्पर्य लाल शिखा अर्थात चोटी से है। यह मुद्रा भी एक हाथ द्वारा नाटक आदि धारण की जाती है। मुद्रा स्वरूप के अनुसार यह त्रिशूल, तीन लोक और वेदों की सूचक है। प्रथम विधि
दायीं हथेली को
सामने की तरफ स्थिर
करें, तर्जनी, मध्यमा और अनामिका अंगुलियों को ऊपर की ओर सीधा रखें तथा अंगूठे के
और
के
अग्रभाग
कनिष्ठिका
अग्रभाग को परस्पर संयुक्त करने पर
ताम्रचूड़ मुद्रा का
प्रकार
दूसरा बनता है 166
...83
ताम्रचूड़ मुद्रा - 1
लाभ
चक्र- स्वाधिष्ठान, विशुद्धि चक्र तत्त्व - जल, वायु, तत्त्व ग्रन्थि - प्रजनन, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रंथि केन्द्र- स्वास्थ एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - मल-मूत्र अंग, गुर्दे, प्रजनन अंग, नाक, कान, गला, मुँह, स्वर तंत्र।