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________________ भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......79 23. ऊर्णनाभ मुद्रा यहाँ ऊर्णनाभ मुद्रा से अभिप्रेत मकड़ी है। मकड़ी एक प्रकार का कीड़ा है जो लगभग सभी जगह पाया जाता है। इस कीड़े के मुँह से एक तरल पदार्थ निकलता है जो प्राय: विषैला होता है। मकड़ी के लिए यह उक्ति प्रसिद्ध है कि वह स्वयं अपना जाल बनती है और स्वयं ही उसमें फंस जाती है। मकड़ी स्वभावत: फुर्तीली होती है। ___ यह नाट्य मुद्रा जापानी और चीनी बौद्ध के वज्रयान एवं मंत्रयान परम्परा की तांत्रिक मुद्रा है। इस मुद्रा को कलाकार, नर्तक, उपासक या पुजारी; डर, खूखारापन, चोरी आदि भावों को दर्शाने के लिए धारण करते हैं। प्रथम विधि दायें हाथ की सभी अंगुलियों एवं अंगूठे को हथेली का स्पर्श किये बिना आधा मुड़ा हुआ रखने पर ऊर्णनाभ मुद्रा बनती है।62 ऊर्णनाभ मुद्रा-1
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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