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76... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
21. सन्दंश- मुकुल मुद्रा (तृतीय प्रकार )
नाटक आदि में उपयोगी यह मुद्रा चित्र स्वरूप के अनुसार कौंए की सूचक है। निम्न मुद्रा चित्र में हाथों की अंगुलियाँ कुछ खिली हुई और कुछ अविकसित अवस्था में है इसलिए इसका नाम सन्दंश- मुकुल मुद्रा है। प्रथम विधि
सामान्य विधि के अनुसार दायीं हथेली को किंचित ऊपर की ओर करें, तर्जनी और मध्यमा के अग्रभाग को अंगूठे के प्रथम पोर और दूसरे पोर के जोड़ पर रखें, फिर अनामिका और कनिष्ठिका को ऊपर की तरफ फैलाई हुई रखने पर सन्दंश- मुकुल मुद्रा बनती है। 59
सन्दंश मुद्रा - 1
लाभ
चक्र - सहस्रार, अनाहत एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व - आकाश एवं वायु तत्त्व ग्रन्थि— पिनियल, थायरॉइड, पेराथायरॉइड एवं थायमस केन्द्र - ज्ञान, ज्योति, विशुद्धि एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - ऊपरी मस्तिष्क, आँख, नाक, कान, गला, मुख, स्वर तंत्र, हृदय, फेफड़े, भुजाएँ, रक्त संचरण तंत्र।