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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......75 21. सन्दंश मुद्रा (द्वितीय)
सन्दंश मुद्रा के तीन प्रकारान्तर हैं।
इस मुद्रा के तीनों ही प्रकार नाटक आदि में धारण किये जाते हैं। दर्शाये चित्र के अनुसार यह मुद्रा सत्य, संगीत एवं अकेलेपन का सूचक है।
द्वितीय प्रकार की सन्दंश मुद्रा निम्न प्रकार से बनती है। प्रथम विधि ____सामान्यतया दायीं हथेली को ऊपर की तरफ करें, अंगुलियों और अंगूठे को परस्पर में अलग-अलग करते हुए हल्के से हथेली के अंदर भाग की ओर मोड़ें तथा मध्यमा अंगुली को बाहर की तरफ सीधी रखने से द्वितीय प्रकार की सन्दंश मुद्रा बनती है।58
लाभ
सन्दंश मद्रा-1 चक्र- सहस्रार, आज्ञा एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- आकाश एवं जल तत्त्व ग्रन्थि- पिनियल, पीयूष एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- दर्शन, ज्योति एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मस्तिष्क, स्नायु तंत्र, आंख, मल-मूत्र अंग, गुर्दे, प्रजनन अंग।