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________________ भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप......73 निचला मस्तिष्क। 21. सन्दंश मुद्रा (प्रथम) सन्दंश का शाब्दिक अर्थ है संडासी। यह लोहे का बना एक औजार है जो किसी वस्तु को पकड़ने के काम आता है। जिस प्रकार न्याय या तर्क सिद्धान्त में अपने प्रतिपक्षी को दोनों ओर से जकड़ या बांध देते हैं उसी प्रकार संडासी से बर्तन आदि को पकड़ते हैं।55 निम्न चित्र के अनुसार यह मुद्रा आशंका, भय और उदारता के भावों को प्रकट करती है। विद्वानों ने इसे उक्त गुणों की सूचक बतलाई है। इस मुद्रा में अंगुलियों की गति होती है। प्रथम विधि दायी हथेली को थोड़ी सी ऊपर की ओर करें, अंगुलियों और अंगूठे को अलग-अलग करते हुए उन्हें किंचित हथेली की तरफ मोड़ें तथा अंगुलियों का संकोच-विकोच करते रहने से सन्देश मुद्रा बनती है।56 सन्दंश मुद्रा-1
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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