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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप 71
प्रथम विधि
दायीं हथेली को सामने की ओर स्थिर करें, फिर तर्जनी, मध्यमा और अनामिका अंगुलियों को किंचित हथेली की ओर झुकायें, अंगूठे को झुकी हुई तर्जनी के समीप रखें तथा कनिष्ठिका अंगुली को ऊपर की ओर सीधा रखने से हंसपक्ष मुद्रा बनती है। 52
हंसपक्ष मुद्रा - 1
लाभ
चक्र - विशुद्धि एवं मूलाधार चक्र तत्त्व- वायु एवं पृथ्वी तत्त्व ग्रन्थि - थायरॉइड, पेराथायरॉइड एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र - विशुद्धि एवं शक्ति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - नाक, कान, गला, मुँह, स्वर यंत्र, मेरूदण्ड, गर्दे । द्वितीय विधि
भरत मुनि के अनुसार जिस मुद्रा में तर्जनी, मध्यमा एवं अनामिका समान रूप से फैली हुई, कनिष्ठिका ऊर्ध्वमुख और अंगुष्ठ कुंचित हो वह हंसपक्ष मुद्रा है। 53