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भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप... ...69
पानी अलग हो जाता है। हंस मोती चुनने का काम भी करता है। हंसमुख एक उपमा भी है जो सुन्दर मुख वालों को दी जाती है ।
नाटक आदि में की जाने वाली यह मुद्रा विवाह, जीवन प्रवर्त्तन आदि की है।
सूचक
प्रथम विधि
इस मुद्रा में दायें हाथ के अंगूठे को तर्जनी के प्रथम पोर से स्पर्शित करते हुए रखें तथा मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका अंगुलियों को थोड़ी सी अलग कर ऊपर की तरफ सीधा रखने से हंसास्य मुद्रा बनती है। 50
हंसास्य मुद्रा- 1
चक्र- मणिपुर, सहस्रार एवं आज्ञा चक्र तत्त्व - अग्नि एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि - एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र - तैजस एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, स्नायु तंत्र, यकृत तिल्ली, आँतें एवं निचला मस्तिष्क ।
लाभ