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68... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
द्वितीय विधि
नाट्य शास्त्र के मतानुसार जिस मुद्रा में मध्यमा एवं अंगूठा संडासी जैसी स्थिति में संयुक्त हो, तर्जनी किंचित वक्र तथा अनामिका और कनिष्ठिका ऊर्ध्व प्रसरित हो वह भ्रमर मुद्रा है 1 49
भ्रमर मुद्रा - 2
लाभ
चक्र - सहस्रार एवं अनाहत चक्र तत्त्व- आकाश एवं वायु तत्त्व ग्रन्थि - पिनियल एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र - ज्योति एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- ऊपरी मस्तिष्क, आंख, हृदय, फेफड़े, भुजाएं, रक्त संचरण प्रणाली । 19. हंसास्य ( हंसमुख ) मुद्रा
हंसमुख नाम की यह मुद्रा हंस पक्षी के मुख भाग को सूचित करती है। हंस की परिगणना उत्तम पक्षियों में की जाती है। यह पक्षी बड़ी-बड़ी झीलों में रहता है, इसके मुँह में एक विशेष प्रकार का द्रव्य होता है जिससे दूध-दूध और पानी